तूं ही बता ऐ कान्हा
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कभी
खिलखिलाते थे हम
तेरे पास आने से
क्यों आज उदास है हम
तेरे चले जाने से.
ये वृन्दावन की
कुन्ज-गलियां
जहां चहुंओर
खुशियां नाचा करती थी
हर चीज, हर आलम में
जहां मधुवाणी गूंजा करती थी
क्यों आज उदास है,,,?
जबकि केवल एक
तूं ही तो नहीं हमारे पास है
सब-कुछ पहले जैसा ही है
कुछ भी नहीं बदला है
फिर ऐ मनमोहन !
क्यों सबकुछ
सूना-सूना सा लगता है
क्यों तेरा इंतजार रहता है
तूं ही बता ऐ कान्हा !
एक तेरे चले जाने से
अब क्यों नहीं दिल लगता है.
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✍️- तुलसीराम “राजस्थानी”

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