चार राज्यों के चुनाव परिणाम कल आ गए। किसी के लिए अप्रत्याशित किसी के लिए खुशी का कारण सबसे पहले भारतीय जनता पार्टी को बहुत-बहुत बधाई कि उसने विपरीत परिस्थितियों में इतनी बड़ी जीत हासिल की। शायद किसी ने कल्पना भी नहीं की थी सभी एग्जिट पोल छत्तीसगढ़ और मध्य प्रदेश में कांग्रेस की जीत मान रहे थे और राजस्थान में कांटे की टक्कर मान रहे थे। लेकिन एक तरफ जीत भारतीय जनता पार्टी ने हासिल की लेकिन कांग्रेस को जो हार्मनी इस हार का आकलन अब करने का उचित समय है और बीजेपी को इतनी बड़ी जीत के कर्म को समझने के का समय है यदि कांग्रेस इस समय भी इस पर ध्यान नहीं देती है तो जल्दी ही इतिहास बन जाएगी और ऐसा होना दुर्भाग्यपूर्ण होगा।
जब 2014 का लोकसभा चुनाव था तो इसकी तैयारी भारतीय जनता पार्टी ने 2010 में ही शुरू कर दी थी नरेंद्र नरेंद्र मोदी उसे समय गुजरात के मुख्यमंत्री हुआ करते थे इनका इतना प्रचार किया गया कि भारतीय जनमानस में यह पूरी तरह छा गए आडवाणी जी भी उनके सामने छोटे नजर आने लगे फिर अन्ना आंदोलन और रामदेव द्वारा किया जाने वाला 2013 में भारतीय पूरी तरह मोदी मय हो गया। दरअसल भारतीय जनता इतनी भोली है कि उसके सामने झूठ और सच ज्यादा मायने नहीं रखता मायने रखता है उसे बात को कितने प्रभावशाली ढंग से रखा गया है राहुल गांधी के आलू सोने वाला वीडियो इस बात का बहुत बड़ा उदाहरण है अब वह वीडियो चाहे एडिटेड था यानी झूठा था लेकिन बीजेपी ने उसे इस तरीके से रखा की लगभग भारत राहुल गांधी को पप्पू मानने लगा।
और फिर नरेंद्र मोदी जो कि इस समय मुख्यमंत्री थे गुजरात के उनके द्वारा 15 लाख 2 करोड लोगों को रोजगार घर पर हर घर पोखर को गहरी किस की आय दुगनी जैसे वादे जनमानस पर इतने छाए गए कि आज तक निकलने में नाकाम हो रहे हैं हो रहे हैं।
मैं यहां यह नहीं कह रहा हूं कि कांग्रेस को भी इस तरह छल कपट करना चाहिए लेकिन स्थल का तोड़ तो प्रभाव चल दिन से निकलना ही चाहिए अपनी बात को प्रभाव से जनता के बीच में रखने से चाहिए अपनी छवि को सुधारना तो चाहिए।
दूसरा प्रमुख पहलू है भाजपा का वोट मैनेजमेंट चुनाव के साल में पहले से ही भाजपा के कार्यकर्ता अपने भूत के मतदाताओं को साधने में लग जाते हैं और किसी भी हालत में अपने परंपरागत मतलब कुछ रखना नहीं देते चाहे इसके लिए उन्हें कुछ भी करना पड़ जाए साम दाम दंड भेद की राजनीति की पूरी ग्रंथ है भाजपा यदि कांग्रेस की बात की जाए तो कांग्रेस का प्रमुख संगठन सेवा दल आज कहां है कोई भी नहीं जानता जबकि सेवादल कांग्रेस की नहीं है मतलब कांग्रेस में अपने कार्यकर्ता की पहचान करने की बहुत बड़ी कमी है शायद इसी कारण कांग्रेस का कार्यकर्ता कांग्रेस के लिए नीतियों को आम जनता तक पहुंचने में असफल रहता।
साथ में कहां भाजपा के पास एड चुनाव आयोग सीबीआई जैसी एजेंसीज और सबसे बड़ी पैसों की ताकत है जो कि विपक्षियों और उन पत्रकारों पर भारी पड़ती है जो उनके खिलाफ आवाज उठाते हैं।
मेरे विधानसभा क्षेत्र की ही बात की की जाए तो महेंद्र चौधरी जो कल तक यहां पर विधायक थे और विधानसभा में उप मुख्य सचेतक भी थे। क्षेत्र के विकास में महेंद्र चौधरी ने किसी तरह की कसर नहीं छोड़ी जो कुचामन सिटी शुरुआत में उप तहसील था उसे जिला स्तर तक लाकर उन्होंने खड़ा कर दिया था। साथी उन तक जो अपने व्यक्तिगत काम लेकर भी व्यक्ति गया उसके भी उन्होंने काम करवाए लेकिन फिर भी हार गए। इस हार के कारण जानने के लिए जब मैं निकला तो जाना कि महेंद्र चौधरी के जो नजदीकी कार्यकर्ता थे यह लोग जनता के बीच में महेंद्र की बात को पहुंचाने का काम काम करते थे और महेंद्र की नजरों में अपनी छवि निकालने का काम ज्यादा करते थे साथ ही ज्यादातर अक्सर भी इनकी हार का मुख्य करण रहे जो कि महेंद्र चौधरी के नाम के पीछे अपनी चांदी बनाने में लग रहे और महेंद्र चौधरी को बातों का पता ही नहीं लगा जनता में इन सब बातों का गलत संदेश गया और यही कहानी कमोबेश पूरे हिंदुस्तान की है।
दूसरा मुख्य कारण यह रहा जो बीजेपी के परंपरागत वोटर थे उनको महेंद्र चौधरी ने साधने कोशिश की और राजनीति में असफल रहे लेकिन उन्होंने उनके भरोसे पर महेंद्र चौधरी बड़ा दाव खेल गए।
