
आज कोई समाचार नहीं, कोई कार्यक्रम नहीं,कोई बकवास नहीं। क्योंकि आज का जो समाचार है वह इतना दुखद है कि इससे ऊपर सोचना भी खुद पर लानत भेजना होगा। बहुत विभत्स घटना हुई, पहलगाम में कुछ आतंकी आए और हमारे 28 पर्यटक भाइयों को गोलियों से भून दिया। हर भारतीय का दिल बैठ सा गया। इस विभत्स घटना को सुनकर।

वहां से जो वीडियो उभर कर आए उन्हें देखा नहीं जा सकता और मैं तो उन्हें देख भी नहीं सका लेकिन वह रे मेरे नए भारत की राजनीति अभी तो उन मासूमों के शवों को अग्नि भी नहीं दी जा सकी उससे पहले ही हमारे यहां राजनीतिक बयान बाजी शुरू हो गई। एक पोस्टर जारी किया गया उसे करुण दृश्य का का जिसमें मेरी एक बहन अपने पति के शव के पास बैठी है। और ऊपर कोटेशन दिया गया “धर्म पूछा जाती नहीं”।

जाहिर सी बात है विपक्ष पर यह तंज कसा गया था। क्योंकि विपक्ष जातिगत जनगणना की मांग कर रहा है। अरे भाई कम से कम 2 दिन तो रुक जाते आज तो कम से कम यह जताते कि आतंकियों के खिलाफ पूरा देश एक साथ खड़ा है। खैर यह तो निश्चित हो गया है कि यह हमला भी हमेशा की तरह पाकिस्तान के इशारे पर हुआ है।
पाकिस्तान और चीन का मकसद हमेशा हमारे देश में सामाजिक और आर्थिक अस्थिरता पैदा करना रहा है। कल के हमले में पाकिस्तान का मकसद भारत के सांप्रदायिक सौहार्द को बिगाड़ना था और यह अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि बैसरन जैसी जगह पर 95% गैर मुस्लिम पर्यटक होते हैं। उन्होंने तो उसे मुस्लिम घोड़े वाले को भी नहीं बक्षा जो किसी पर्यटक की जान बचाने की कोशिश कर रहा था। साथ ही ईसाई और तीन जैन धर्म के लोग भी मारे गए।

फिर नाम और धर्म क्यों पूछा जाहिर सी बात है कि उनके पाकिस्तानी हैंडलर यह चाहते थे कि हिंदू मुस्लिम का संदेश दिया जाए। उन्हें पता था कि भारत में सांप्रदायिक विभाजन और बढ़ेगा भारत में हिंदू और मुसलमानों के बीच विभाजन जितना मजबूत होगा पाकिस्तान के लिए हालात उतने ही अच्छे होंगे और हम उन्हीं के बने एजेंडे को पूरे जोर-जोर से के साथ आगे बढ़ाने में लग गए।

वह जैसा चाहते थे हम वैसा ही कर रहे हैं अरे मेरे भोले भाइयों कुछ तो अपना दिमाग इस्तेमाल कर लो यार पत्रकार श्याम मीरा सिंह ने एक ट्वीट किया है ट्वीट में आपको पर पूरा पढ़ कर सुनाता हूं।
कश्मीर से आने वाले टूरिस्टों ने हमेशा यही कहा कि कश्मीर सुंदर है और वहाँ के लोग और भी सुंदर और मददगार हैं। वे सब मुस्लिम थे। अगर वे बुरे थे तो टूरिस्टों के अनुभव इतने अच्छे क्यों थे? पहलगाम हमले पर लोकल कश्मीरी विरोध भी कर रहे हैं, रैलियाँ निकाल रहे हैं और मस्जिदों से इस घटना की निंदा की जा रही है।
बीते सालों में कश्मीर के लोगों का बाक़ी भारत से लगाव बढ़ा है। वे चाहते हैं वहाँ अमन आए। शांति बढ़े। कश्मीरियों की भारत से बढ़ती नज़दीकी और शांति आतंकियों को अच्छी नहीं लगती। इसलिए ये आतंकी हमला हुआ। कश्मीर में वैसे भी कुछ ही पाकिस्तानी ट्रेंड आतंकी छुपकर बचे हैं। उन चंद आतंकियों के लिए पूरे कश्मीरियों को गाली देना सही नहीं है। उन चंद जाहिलों के लिए पूरी क़ौम के एफ़र्ट्स को डिसरेस्पेक्ट नहीं करना चाहिए।
कश्मीर हमारा है, कश्मीरी हमारे हैं। हम उनके हैं। इस आतंकी हमले को, लोकल कश्मीरियों और अपने देश के मुस्लिमों से नफ़रत से लड़ने के लिए इस्तेमाल नहीं होने देना चाहिए। ये वक्त एकजुट होने का है। और इस हमले के ख़िलाफ़ खड़े होने का है।

आगे बढ़ने से पहले 2013 से पहले का एक वीडियो आप लोगों से शेयर करना चाहूंगा। प्रधानमंत्री आज यही सारे सवाल आपके सामने यक्ष प्रश्न की तरह खड़े हैं। भारत आज आपसे इन्हीं प्रश्नों के जवाब चाहता है। है कोई जवाब आपके पास खैर जवाब देही का तो आपके दूर-दूर तक कोई नाता नहीं है।

और हमारा मीडिया 70 तोपों की सलामी भी शायद कम पड़ेगी इनके लिए। कल से जो कार्यक्रम चल रहे हैं मुख्यतः जो सवाल उभर कर आते है वह है।
*अमित शाह श्रीनगर पहुंचे।
*पीएम मोदी ने टेलीफोन पर बात की।
* पीएम लगातार टच में।
*अमित शाह मीटिंग कर रहे हैं।
* सरकार का खतरनाक एक्शन होगा।
* बदला लिया जाएगा।
सीधा सवाल है पहलगाम मे सुरक्षा मे चूक थी या नहीं। अगर थी तो जिम्मेदारी किसकी, प्रधानमंत्री या ग्रहमंत्री या राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार की।
गोदी मीडिया की जुबान पर मामला हिंदू-मुसलमान पे आ कर टिक गया है।
👉🏻व्यस्त पर्यटन स्थान पर सुरक्षा पे इतनी बड़ी चूक कैसे हुई?ये कोई बता नहीं रहा है
👉🏻आतंकवादी सेना की वर्दी में हत्या का तांडव मचाते रहे और रेस्क्यू ऑपरेशन डेढ़ दो घंटे बाद शुरू क्यों हुआ,इस पर कोई सवाल कर नहीं रहा है।
.👉🏻धारा 370 हटाने और नोटबंदी के बाद आतंकवाद समाप्त क्यों नहीं हुआ?ये कोई पूछ नहीं रहा है।
रिटायर्ड मेजर जनरल जी डी बक्शी का गुस्सा देखिए। और समझिए इस सरकार की नाकामी को। मेजर जनरल यहाँ चीख चीख कर कह रहे हैं।
* कोरोना काल में भर्ती नहीं हुई।
* सेना में 1. 80 लाख पद खाली है।
* हम पैसा बचा रहे हैं और यह सब झेल रहे हैं।
* यह आइडिया किस बुद्धिमान का था।
* पहाड़ जंगल में लड़ना हो तो सेना चाहिए।

तो क्या इस आतंकी हमले को सुरक्षा में चूक नहीं माना जाना चाहिए। जहां एक जगह पर 2000 से ज्यादा पर्यटक हो वहां एक भी सुरक्षा कर्मी का ना होना वो भी कश्मीर जैसे आतंकवाद से ग्रस्त क्षेत्र मे प्रश्न खड़े करता ही है। और सरकार से सवाल तो बनता ही है।
बहरहाल आप सभी दर्शकों से एक अपील की दुखद क्षण में अपना संयम ना खोए। राजनीति तो हमेशा होती रहेगी। आज तो कम से कम एक दूसरे के साथ खड़े होकर हम विश्व को बता दे कि हम हर हाल में आतंक से लड़ने के लिए कमर कसकर तैयार हैं।