नक्सलबाड़ी से सन्देशखाली तक..
सन्देशखाली ने जाहिर कर दिया है, कि 15 साल की सत्ता और 40 साल संघर्ष के बावजूद, ममता जमीन पर, कोई बदलाव लाने में नाकाम है।
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बंगाल का सामाजिक इतिहास रक्तरंजित है। 18वी सदी के कृषक विद्रोहों से लेकर, बंगभंग के बाद आंदोलन, अनुशीलन समिति या युगांतर जैसे हथियारबंद गुप्त संगठन कहें,
या सन 46 के हिन्दू मुस्लिम दंगे, 47 का तेभागा में किसान विद्रोह..
हिंसा चटपट जोर पकड़ती है।
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आजादी के बाद यहां कांग्रेस ने 20 बरस राज किया। यह दौर कुछ शांति का रहा, लेकिन जमीन के नीचे उथल पुथल थी।
कांग्रेस, अपने दौर में भद्रलोक, इंडस्ट्रियलिस्ट, जमींदार और उच्च मध्यवर्ग के हितों की पोषक समझी गयी।
गाँव गरीब के दिमाग में यह छवि मजबूत होती रही। नक्सलबाड़ी जैसे आंदोलन की जमीन यहीं से तैयार होती है। तो लेफ्ट पार्टियों ने अपना बेस इसी निचले तबके को बनाया।
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पहली बार, जब लेफ्ट की कोअलिशन सरकार गिरी, और कांग्रेस लौटी, तो इस बार, लौह शिकंजे से राज किया।
उद्दंड विपक्ष को जगह नही मिली। लाठी मिली, जेल मिली, न कोर्ट में सुनवाई, न थाने में।
तो लेफ्ट ने भी पैंतरा बदला, मुंहतोड़ जवाब देना शुरू किया। गन और टेरर कल्चर बढ़ा।
अगले चुनाव में सत्ता से कांग्रेस हारी, लेकिन लेफ्ट को रास्ता दिखा गयी।
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लेफ्ट की सरकार ने दो क्रांतिकारी काम किये। पहला- बड़े पैमाने पर भूमि सुधार किए। गरीबो को जमीन बांटी।
ये गरीब गुरबों की सरकार थी। हर तरह का वेल्फेयरिज्म.. राशन, पानी, जमीन- मुफ्त मुफ्त मुफ्त!
इस वितरण के लिए पंचायतों का सशक्तिकरण, दूसरा क्रांतिकारी काम था। पंचायत को अकूत फंड और, लाभार्थी तय करने का अधिकार मिला।
ये देश भर में पंचायती राज और वेल्फेयरिज्म के बहुत पहले की बात है।
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पर इसके साथ हुई तीसरी चीज।
पंचायत में जीतकर, लेफ्ट का हर कार्यकर्ता, अब अपने गाँव का राजा था। पुलिस हाथ मे, राशन-पानी, जमीन, मजदूरी, हर सरकारी लाभ उसके हाथ मे..
ये पार्टी के गिरोह का राज था।आप पार्टी समर्थंक हो, सब मिलेगा। नही हो- जीना दूभर हो जाएगा।
सरकार की हर स्कीम पार्टी की स्कीम थी। पार्टी का वर्कर, लीडर इलाके का माईबाप था। मैन टू मैन मार्किंग रखता, वोट डलवाता- या वोट डालने से रोकता। कैंडिडेट उठा लेता, नाम वापस करा देता।
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पंचायत, बंगाल में सत्ता का आधार है। इसके इलेक्शन जीतना हारना, जीवन मरण का प्रश्न है। तीस साल, इस मैथड से लेफ्ट ने डंडा लेकर राज किया।
हर पंचायत पर एक करप्ट, हिंसक, दादागिरी वाला पॉलीटकल गिरोह मजबूत हुआ। लेफ्ट की सत्ता उनके कंधों पर चढ़कर लौटती रही।
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और फिर तब तक चलती रही, जब तक ममता ने उन्हें, उसी खेल में हरा न दिया।
कांग्रेसी ममता को, शुरू में आम कांग्रेसी की तरह भद्रलोक, धनिक का समर्थंक माना जाता।
लेकिन कांग्रेस से टूटने के बाद ममता ने निचले तबके में जड़ जमाई।
सिंगूर ने उन्हें ऐतिहासिक मौका दिया, जब वे गरीबो के साथ खड़ी दिखी, लेकिन लेफ्ट अमीरों के साथ..
इस मंजर के बाद सीन बदला। ममता के साथ नया बेस जुड़ा।
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ममता ने पंचायतों पर फोकस किया। लेफ्ट के गिरोहों को तोड़ा, या जो गिरोह से दुखी थे, उन्हें जोड़कर, जवाबी गिरोह बनाया।
लाठी के बदले लाठी, डर का जवाब डर.. और चतुर राजनीतिक प्रबंधन। नतीजा- लेफ्ट को उखाड़कर, ममता सत्ता में आई।
आज तक बनी हैं।
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जिस रणनीति से उन्होंने लेफ्ट का किला तोड़ा, भाजपा ठीक वही खेल उनके साथ खेल रही है।
जो कॉन्फ्लिक्ट, चालीस सालों से बंगाल की धरती पर है, उसमे हिंदू मुस्लिम तड़का, और ED-CBI का डंडा जुड़ गया।
जमीनी प्रोपगंडे के लिए पहले सिर्फ RSS वर्कर था। अब मेनस्ट्रीम मीडिया भी है। ममता के गिरोह कमजोर पड़ रहे हैं। भाजपा में डिफेक्ट कर रहे है।
पहले पंचायतों में लेफ्ट- TMC कटते मरते है। अब भाजपा- TMC कटते मरते हैं।
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सन्देशखाली, पंचायत के एक गिरोहबाज नेता के खिलाफ फूटा गुस्सा है। हर गाँव मे बने TMC ऑफिस, पहले के लेफ्ट के ऑफिस की तरह पावर सेंटर है।
जहां से इलाके का बॉस आपकी जमीन, खेती, मजदूरी, गैस, पानी, DBT तय करता है। हैरासमेंट करके पैसे बनाता है।
शेख शाहजहां भी वही कर रहा था। उसकी बदकिस्मती,कि विरोध चुनाव की बेला में फूटा। उसका जो होगा, सो हो।
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पर मैं देश का बंगालकरण होते देखता हूँ। पार्टी ऑफिस,सत्ता का केंद्र बन गए हैं।
मुट्ठी भर लोगो के गिरोह हर जगह काबिज हो रहे हैं। ब्रूटल,पक्षपाती, एब्यूजिव,हिंसक हो रहे हैं।
ऐसी राजनीति, समाज की बनावट को यूं बदल देती है, कि लड़ने के लिए, वैसा ही बनना पड़ता है।तो अन्य दल भी अपने गिरोह बनाएंगे, पालेंगे, सत्ता में आये, तो संरक्षण देंगे।
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सन्देशखाली, कहीं दूर मत समझिये। वो आपके दरवाजे पर दस्तक दे रहा है।
श्री मनीष सिंह के आलेख से साभार