Saturday , 15 March 2025

सेल्यूट सरदार :श्रद्धांजलि

           

 दोस्तों यह वीडियो 2014 से पहले का है।एक वह समय था जब पत्रकार निर्भीक होकर प्रधानमंत्री से सवाल कर सकता था और यह सारे सवाल अनस्क्रिप्टेड होते थे।और मनमोहन इन सारे सवालों का जवाब मुस्कुरा कर देते थे।यही मनमोहन को मनमोहन बनाती थी । मनमोहन सिंह ने एक बात कही थी “ हिस्ट्री विल बी काइंड टू मी देन मीडिया” पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने यह बात इसलिए कही थी क्योंकि उसे समय मीडिया उनसे ठीक है सवाल करता था और मनमोहन सिंह हर सवाल का जवाब मुस्कुरा कर देते थे।

             दूसरी घटना 2005 की है मनमोहन सिंह जेएनयू में देश के प्रथम प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू की प्रतिमा का अनावरण करने पहुंचे, छात्र उनके संबोधन के समय उनका विरोध कर रहे थे काले झंडे दिखाए जा रहे थे।बाद में कुछ छात्रों को हिरासत में लिया गया, तथा कुछ छात्रों पर प्रोक्टोरियल इंक्वारी बैठी जब मनमोहन सिंह को इसके बारे में पता चला तो उन्होंने वीसी को फोन करके छात्रों के साथ नरमी से व्यवहार करने को कहा। यही नहीं उन्होंने वल्टेयर की एक बात को दोहराते हुए कहा। “I may not agree with what you say, but I will protect till death your right to say to.”

          मतलब “हो सकता है मैं आपके विचारों से सहमत नहीं हो पाऊं लेकिन मरते दम तक आपकी अभिव्यक्ति के अधिकार की रक्षा करूंगा” उनकी यही अदा उन्हें सरदार बनाती थी।आज गर्व से कहा जा सकता है सिंह इस किंग |

          दोस्तों 2011 में एक बार अमेरिका ने मनमोहन सिंह को लक्षित करके कहा था कि जब भारत बोलता है तो दुनिया सुनती है। दोस्तों वह अलग बात है कि वर्तमान सरकार ने इस बात को अपना बनाकर कह दिया। लेकिन सच्चाई तो यह है कि यह बात मनमोहन सिंह के लिए कही गई थी उपरोक्त वीडियो यह बताता है की जब मनमोहन विदेश जाते थे तो उनका कितना सम्मान होता था आज की तरह नहीं कि भारतीयों द्वारा विदेशों में नारे लगवा कर कहा जाए कि भारत का डंका बज रहा है। 

           प्रस्तुत वीडियो चीख चीख कर कह रहा है कि भारतीय अर्थशास्त्र की प्रधानमंत्री को सुनने के लिए विश्व कितना उत्सुक था और हां मनमोहन सिंह को बोलने के लिए किसी टेलीप्रॉन्पटर की भी जरूरत नहीं पड़ती थी। कुल 117 प्रेस कॉन्फ्रेंस की थी मनमोहन सिंह ने और हर प्रेस कॉन्फ्रेंस में खुलकर हर पत्रकार के पूछे सवालों का जवाब मुस्कुरा कर दिए थे।

          उनके सामने रवीश, अभिसार,दिलीप सरदेसाई जैसे बाल की खाल निकालने वाले पत्रकार हुआ करते थे। लेकिन मनमोहन वार्ता के बीच में यह कहकर नहीं निकलते थे की “ दोस्ती बनी रहे”। दोस्तों अब बात करते हैं निजीकरण की अक्सर तर्क दिया जाता है कि मोदी सरकार वही कर रही है जो मनमोहन सरकार ने किया नहीं दोस्तों फर्क है उस निजीकरण में और इस निजीकरण में सरल शब्दों में समझने की कोशिश करते हैं।

           दोस्तों भारत का एक प्रमुख बैंक है “आईसीआईसीआई बैंक” नेहरू का बनाया पीएसयू बैंक क्या आप बता सकते हैं इसका मालिक कौन है चलिए गूगल करके बता दीजिए कि कौन है। ग्राफ में मिलेंगे जनरल पब्लिक संस्थागत निवेशक बैंक म्युचुअल फंड आदि ग्राफ आपके सामने मौजूद है।

           दूसरे शब्दों में आम नागरिक और विशेषज्ञ संस्थान इसके मालिक है यहां प्रमोशन शेयर खोजिए नहीं मिलेगा यानी उद्यम सरकारी नहीं तो एक आदमी या ग्रुप की संपत्ति भी नहीं है। आम आदमी अपने-अपने शहरों के मुताबिक डायरेक्टर भेजते हैं और एक सीईओ नियुक्त करते हैं।आगे सारा संचालन नियमों के अनुसार चलता है इसे एक लोकतांत्रिक निजी संस्थान का निर्माण भी कहा जा सकता है।

        वहीं वर्तमान निजीकरण देखिए अडानी का शेयर होल्डिंग पेटर्न 75% प्रमोटर ग्रुप का है 25% तमाम संस्थागत निवेशक और आम पब्लिक यहां एक व्यक्ति या ग्रुप की कमांडिंग पोजीशन है।कंपनी का धन संपत्ति पॉलिसी एक ही हाथ में है यह एक राजवाड़ा है। “आइसीआइसीआइ बैंक” एक भारत का सबसे बड़ा निजी बैंक है सब कुछ पारदर्शी है।

           यहां चंदा कोचर को लात मार कर बाहर किया जा सकता है वह चंदा कोचर जिसने लेनदेन की एवज में चार पाँच सौ करोड़ का निजी लाभ ले लिया था। क्या अदानी इंडस्ट्रीज में या ऐसे किसी अन्य और संस्थान में शेयर होल्डर के पास या ताकत है नहीं ना।

          एक या दो कंपनियों को (अडानी अंबानी लाला रामदेव )को माइंस, पावर, इंफ़्रास्ट्रक्चर,पोर्ट,रेल,फूड,कम्युनिकेशन आदि सौंप देना निजीकरण नहीं है,निजी मोनोपोलाइजेशन है।जीवन के हर सांस के लिए आप एक कंपनी एक मालिक एक मुट्ठी के बंधक है।यह फर्क है मनमोहन सिंह के निजीकरण में और आज के निजीकरण में।जी हां दोस्तों माइंस,पावर,इंफ्रास्ट्रक्चर, पोर्ट,रेल,फूड,कम्युनिकेशन सब कुछ  एक या दो हाथो में रख देना प्राइवेटाइजेशन नहीं है।यह मोनोपोलाइजेशन है। तर्क यह भी दिया जाता है कि सरकार भी तो मोनोपोलाइजेशन करती है। तो दोस्तों सरकारी मोनोपलाइजेशन अपर्याप्त हो सकता है जानलेवा नहीं।लेकिन निजी मोनोपोलाइजेशन में खतरे विशाल है।मुनाफाखोरी,भ्रष्टाचार,महंगाई और बेरोजगारी की सुनामी की वजह यही है।

          मनमोहन का निजीकरण यह नहीं था वहाँ आम आदमी की आजादी का उसके हितो का सबसे पहले ख्याल रखा जाता था।

         दो भारतीय प्रधानमंत्री सदियों तक याद किए जाते रहेंगे जवाहरलाल नेहरु जिन्होंने एक लाचार देश संभाला था और एक विकासोनमुखी सोच के साथ भारत को दुनिया के देशों के समानांतर खड़ा कर दिया था।दूसरे मनमोहन सिंह जिन्होंने आर्थिक उदारीकरण का मंत्र देकर इस देश की अर्थव्यवस्था को पांचवीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बना लिया था।और आज की तरह झूठे आंकड़ों के आधार पर नहीं।

                        “सेल्यूट सरदार आप सिर्फ सरदार ही नहीं असरदार भी थे “

About Manoj Bhardwaj

Manoj Bhardwaj
मनोज भारद्धाज एक स्वतंत्र पत्रकार है ,जो समाचार, राजनीति, और विचार-शील लेखन के क्षेत्र में काम कर रहे है । इनका उद्देश्य समाज को जागरूक करना है और उन्हें उत्कृष्टता, सत्य, और न्याय के साथ जोड़ना है। इनकी विशेषज्ञता समाचार और राजनीति के क्षेत्र में है |

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