Wednesday , 19 March 2025

बस आखिरी बार! One Last Time!❣️

 बस आखिरी बार! One Last Time!❣️

पहली बार कब इस छोटी सी प्यारी सी ट्रैन में बैठा होऊँगा याद नहीं, पर जब से स्मृति पाई है, रेलगाड़ी का मतलब यह रेल ही थी और सफर का मतलब इसमें सफर करना!🚂

मैं बात कर रहा हूं, उदयपुर से जोधपुर चलने वाली मीटरगेज ट्रैन की, 87 साल से अनवरत चलती ये रेलगाड़ी, जो एक समय में हमें ले जाती थी हमारे दादा दादी के घर, मारवाड़ जंक्शन!

तब छोटी नहीं थी, राजस्थान के दो बड़े हिस्सों को ( मेवाड़ और मारवाड़) को जोड़ती ये रेलगाड़ी, जो यात्री और व्यापार दोनो को संभालती थी, 1936 में रियासतकालीन भारत के समय से चलित है। और अभी तक भी रोज घुमावदार रास्तों से हो कर गंतव्य तक पहुँचती है।

आपने राजस्थान में गोरमघाट का नाम तो सुना होगा, यह प्रसिद्ध घाट सेक्शन और रेलवे स्टेशन इसी रेल लाईन पर पड़ता है।

पर आज एकदम से इस रेल की बात क्यों?? और वो भी ‘बस आखिरी बार” के विचार के साथ!

 तो, समय के साथ सब तरफ ब्रॉडगेज की पटरियां बिछी, उदयपुर जोधपुर को जोड़ने वाली ये रेल भी दोनों तरफ से ब्रॉडगेज में परिवर्तित होती गई। बीच में बस एक हिस्सा मीटरगेज रह गया (मावली से मारवाड़ जंक्शन)। अब मांग चली कि यह भी ब्रॉडगेज किया जाए, ताकी उदयपुर से जोधपुर को फिर से सीधे रेल मार्ग से जोड़ा जाए। कई वर्षों के संघर्ष के बाद अब आमान परिवर्तन शुरू हुआ है, और कल से यानी 27 अप्रैल से यह मीटरगेज रेल इस तरफ से (मावली से) बंद हो जाएगी। यानी आज 26 अप्रैल को यह मावली से आखिरी बार चल रही है! और इस आखिरी सफर में इस रेल का साथ देने मैं भी आज सुबह इसमें बैठ कर मावली से कांकरोली पहुँचा हूं!🚂

हर तरफ ये ही बात थी, कि बस आज लास्ट, फिर जब भी इधर ट्रैन चलेगी, वो ब्रॉडगेज होगी। लोग फ़ोटो खींच रहे है, वीडियो बना रहे है, हर स्टेशन पर एक दूसरे को हाथ हिला रहे है, इंजन के साथ फोटो क्लिक करवा रहे है, अलग ही लगाव का अनुभव कर रहे है। मेरा भी हाल कुछ ऐसा ही है!

 इंसान भी, कितनी जल्दी दिल लगा बैठता है, जीवंत आत्मा से भी और निर्जीव चीज़ों से भी!❣️

मैं भी खिड़की से बाहर देखते हुए एकदम से खो गया, बचपन कि उन पुरानी यादों में, उन रौनक भरे दिनों मे जब यह रेल अपने यौवन पर थी। बचपन के सारे त्योहार, इसी ट्रैन में शुरू होते थे। तब छुट्टियां मतलब दादा दादी के घर, अपनी पानी की बोतल टंगाये, खूब सारा खाने पीने का सामान रखे, पापा मम्मी के साथ हाथ पकड़े पकड़े हम दो भाई चल देते थे इस रेल के सफर में। कांकरोली से मारवाड़..एक तरफ के 5 घंटे लगते थे।

बीच बीच में आते थे कई स्टेशन, यात्रियों की रेलमपेल, मेवाड़ मारवाड़ की संस्कृति का मिलन और गोल-गोल घुमावदार पटरी, जहाँ खिड़की से बाहर देखने पर ही पूरी रेल दिखाई दे जाती थी।

हम आगे से आगे सारे स्टेशन के नाम लेते थे, छोटी छोटी खिड़कियों से प्राकृतिक वादियां निहारते थे, लकड़ी की सीटों पर उछल कूद करते थे, 2 टनल, खूब सारे पुल, झरनों का मज़ा लेते! गोरमघाट आता था, जहाँ की हरियाली और बंदर बहुत प्रसिद्ध थे। बंदरो के लिए हम घर से ही चने या कुछ खाने का ले जाते थे, अपने हाथों में रख कर उनको खिलाते थे। एकदम से कभी कभी बंदर खिड़की पर ही आ जाते थे, लटक जाते थे ऐसे कि भाई कुछ दो तभी जाएंगे!😀

फिर आता था फुलाद, जहाँ का मावा बड़ा फेमस था, एक अंकल अपनी नीली लारी लेकर प्लेटफॉर्म पर आते थे और फटाफट वो मावा खत्म हो जाता था, उसका स्वाद आज भी याद है!
राणावास के बाद हम तैयार हो जाते थे कि बस अब मारवाड़ आने वाला है, और हमें स्टेशन पर लेने दादाजी खड़े रहते थे। ❣️ भले घर पैदल ही जाना है, पर फिर भी हर बार, लेने और छोड़ने आते थे।❣️

 मुझे इस ट्रेन की इतनी आदत लग गयी थी कि घर पर मैं मेरी लाल रंग की ट्राई साईकल से खेलते हुए भी उसको उसी क्रम में हर स्टेशन पर रोकता था। कुंवारिया, सरदारगढ़, चारभुजा रोड, देवगढ़, कामलीघाट, गोरमघाट..एक के बाद एक सब स्टेशन पर साईकल को रोकता था। फुलाद से साईकल को वापस उल्टी दिशा में ले जाना भी जरूरी होता था, क्योंकि वहाँ ट्रैन का इंजन आगे से हट कर पीछे लग जाता था!🛴

अब जब पीछे मुड़ कर देखता हूं, तो मस्तिष्कपटल पर चलती है कई कहानियां! एक बार रो रो कर मैंने सामने वाली एक आंटी से केला लिया, और खाना शुरू ही किया था कि गोरमघाट में एक बंदर आकर वो केला ले गया!! अब आप सोच सकते है मेरा कितना रोना छूटा होगा!😂😂

समय बदला, दिल्ली गया..तो इसी ट्रैन ने मेवाड़ एक्सप्रेस की कनेक्टिविटी दी, मावली से कांकरोली के लिए। घर आने का आखिरी पड़ाव ये ही होती थी। इसी में सब दोस्त मिल जाते थे, जो भी त्यौहारों पर या छुट्टियों में दिल्ली से कांकरोली आ रहे होते थे! 4 रुपये का टिकट होता था, जो अंत तक आते आते 10 रुपये का कर दिया था! 2012 से 2020 तक ये सफर ऐसे ही कटा(अकेले, फिर आयुषी के साथ)। खैर, कोविड के बाद इसमें बैठना नहीं हुआ।

थोड़े दिन पहले जैसे ही यह ख़बर आई कि अब ये ट्रेन बंद होने वाली है, मैंने घर पर पता किया। बताया गया कि 26 अप्रैल के दिन ही आखिरी बार ये ट्रैन मावली से चलेगी। मतलब कांकरोली के स्टेशन पर अब अगली बार जब भी ट्रेन आएगी, वो ब्रॉडगेज होगी। इस समाचार के बाद बस एक ही ख्याल दिल में आया, कि एक आखिरी बार इस ट्रेन में बैठा जाए, और कृष्णवी को भी इस ट्रेन में बिठाया जाए (पहली और आखिरी बार)!💞

मेरे बचपन से कृष्णवी के बचपन तक, इस रेलगाड़ी की स्मृति संजोना चाहता था! बस वो ही किया!❣️

आखिरी सफर का सलाम हमारी प्यारी मीटरगेज रेलगाड़ी। विकासपथ की ओर अग्रसर यह शहर ब्रॉडगेज जरूर चाहता है, पर इस ट्रेन के द्वारा किये गए सफ़र और दी गयी यादें हमेशा हमारे दिलों में बनी रहेगी!❣️

फ़ोटो: आज सुबह, मावली से कांकरोली के बीच – राजस्थान

-दर्पण औदिच्य।

About Manoj Bhardwaj

Manoj Bhardwaj
मनोज भारद्धाज एक स्वतंत्र पत्रकार है ,जो समाचार, राजनीति, और विचार-शील लेखन के क्षेत्र में काम कर रहे है । इनका उद्देश्य समाज को जागरूक करना है और उन्हें उत्कृष्टता, सत्य, और न्याय के साथ जोड़ना है। इनकी विशेषज्ञता समाचार और राजनीति के क्षेत्र में है |

Check Also

कुचामन की होली :महामूर्ख कवि सम्मेलन

        दोस्तों होली का खुमार जोरों से चढ़ा हुआ है। शहर में …