कमला और जवाहर…
एक बहुत बड़ा झूठ फैलाया गया है की ज़ब कमला नेहरू की मृत्यु हुई थी तब नेहरू जी मौजूद नहीं थे और यह भी कहाँ जाता है की नेहरू जी और कमला जी के बीच पति पत्नी वाला प्यार नहीं था आज इसी बात का विश्लेषण करते है। ट्वीटर पर मनीश सिंह नाम के यूजर ने इसका बहुत सुंदर विश्लेषण किया है।
ये झूठ है कि कमला की मौत के दौरान नेहरू मौजूद नही थे। वे कमला के साथ थे।
●●
– इंदिरा के बाद, 1922-25 के बीच कमला दो गर्भपात हुए थे। इनमे एक लड़का था, जो 2 दिन बाद चल बसा था। इसके बाद कमला लगातार बीमार रहने लगी थी।
– नेहरू को नाभा जेल में रखा गया था। संथानम और केलकर भी साथ थे। इन तीनो को तपेदिक का संक्रमण हुआ था। छूटने के बाद, इन सभी को ठीक होने में वक्त लगा, विशेषकर संथानम को।
यह सम्भव है कि कमला को यही संक्रमण जवाहर से मिला हो।।
– 1927-28 के बाद कांग्रेस में नेहरू की व्यस्तता बढ़ती गयी। नेहरू रिपोर्ट, फिर मोतीलाल अध्यक्ष, फिर जवाहर अध्यक्ष और स्वराज की मांग, और लगातार जेल जाना लगा रहा।
●●
टीबी, तब लाइलाज बीमारी थी। संक्रमण बढ़ जाने पर ठंडी जगहों पर बने सेनेटोरियम में धीमा इलाज होता। किस्मतवाले ठीक हो जाते, ज्यादातर नही।
कमला को इलाज के लिए भोवाली सेनेटोरियम में भर्ती कराया गया। नेहरू ने अल्मोड़ा जेल में ट्रांसफर मांगा। वहां की जेल से अनुमति के तहत वे 6 बार, कस्टडडी में रहते हुए कमला से मिलने गए।
यहां हालत स्थिर हुई पर सुधार नही हुआ। इसलिए स्वीट्जरलैंड ले जाया गया। ले जाने वाले इंदिरा और फिरोज थे। यूरोप में सुभाष मौजूद थे।
सुभाष वहां 1930 में चले गए थे। जब पहली खेप मे सभी कांग्रेसी गिरफ्तार हुए। दूसरे लोग बार बार गिरफ्तार होते रहे, सुभाष पहली बार छूटने पर यूरोप चले गए। 1930-37 के बीच वे यूरोप में ही रहे। यही उन्होंने कमला को सेनेटोरियम दाखिल करने में मदद की।
●●
हालत वहां भी न सुधरी। नेहरू ने मिलने के लिए जेल से छुट्टी मांगी, जो केवल विदेश जाने- तय समय मे लौटने, कोई राजनीतिक गतिविधि न करने या प्रेस से न मिलने की शर्तों के तहत मिली।
तो शर्तो के तहत लुजॉर्न गए। कमला की मृत्यु के समय जवाहर, इंदिरा दोनो ही उनके सिरहाने बैठे थे।
●●
कमला का अंतिम संस्कार सुभाष ने कराया, कोरी गप्प और बदनीयत लोगो का प्रोपगंडा है।
महादेवी वर्मा ने लिखा है कि नेहरू कमला की भस्म चांदी की डिब्बी में अपने तकिए के पास रखा करते रहे।
●●
कमला की मृत्यु के बाद भारत वापस जेल की ओर लौटते नेहरू का जहाज रोम में रुका। यहीं वो मशहूर वाकया हुआ, जब
मुसोलिनी नें उनसे मिलने की इच्छा व्यक्त की, और दूत भेजा।
नेहरू ने कहा- आपकी विचारधारा से मेरी विचारधारा नही मिलती। मिलने की कोई जरूरत नही है।
शायद आज मुसोलिनी की काली टोपी और बुद्धि उधार लिए लोग, मुसोलिनी के उसी अपमान की खुन्नस निकाल रहे हैं।