Wednesday , 19 March 2025

तथाकथित वीर

सन 45 में “अग्रणी” की तस्वीर है,
अखण्ड भारत का तीर है।

टोपी-चश्मे में सन्धानरत तथाकथित “वीर” है, बिन टोपी सन्धानरत गिलगिला गोलू “शहीद-ए-कश्मीर है।
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कंपकपाते दशानन हैं छूटती लाठी है। मुखमण्डल भयभीत है।

मुख्य आनन गांधी हैं, दाहिने हाथ नेहरू, बाएं हाथ अबुल कलाम हैं। नेहरू के बगल राजगोपालाचारी हैं, उनके बगल सरदार पटेल, अंत मे आचार्य कृपलानी।

कलाम के बाएं सुभाष हैं,
अंत तीन की शिनाख्त आप करें।
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सन्धानरत सावरकर का नाम 1909 से 1948 तक, तीन सन्धानों में आया।

मगर उसने इस कार्टून के अलावे और कभी भी खुद ट्रिगर पुल नही किया।

एक बार मदनलाल धींगरा, एक बार अनंत कन्हारे, और एक बार नाथूराम गोडसे ने निशाना साधा था। बेचारे फांसी चढ़े।

तथाकथित वीर ने पल्ला झाड़ लिया।
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सन्धानरत शहीद ए कश्मीर, श्यामा प्रसाद मुखर्जी सर्वप्रथम 5 साल कांग्रेस विधायक थे। फिर अगले पांच साल अपनी पार्टी बना ली।

फिर अगले पांच साल बाद हिन्दू महासभा में शामिल हुए। फिर बंगाल की मुस्लिम लीग की सरकार में शामिल हुए।

फिर नेहरू की कैबिनेट में शामिल हुए। फिर आरएसएस में शामिल हुए। फिर जनसंघ में शामिल हुए। कश्मीर में छोटा मोटा प्रदर्शन करते हुए जीवन मे पहली बार जेल गए।

जेल क्या था, डल झील के किनारे एक पॉश बंगला था। पर गिरफ्तारी के प्रेषर में फट गई, हार्ट अटैक से स्वर्गवासी हुए।
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कम लोगो को पता है, इस कार्टून में “अखण्ड भारत” का तीर चलाने वाला मुख़र्जी ने, सन 46 में माउंटबेटन को पत्र लिख कर “पृथक बंगाल देश” की मांग की थी।

खैर..
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मोटिव, हत्या का इरादा, सन्धान की योजना, तो प्लानर के जेहन उपजता है,

अपराध उसी वक्त हो जाता है।

अब केवल कारित होना बचता है जो मौके, किस्मत, हथियार और हत्यारे के उपलब्ध होने का इंतजार कर रहा होता है।

यह कार्टून उस सोच, उस हत्यारी जेहन का दस्तावेजी स्मारक है। गांधी की हत्या की सोच सन 45 में मुकम्मल हो चुकी थी।

इसे बटवारे, दंगे, गलियारे या पाकिस्तान को वादा किये गए पैसे जारी करने से मत जोड़िए।
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दशानन के सिरों का क्रम उस वक्त कांग्रेस के नेतृत्व क्रम को भी बताता है। गांधी के बाद नेहरू, कलाम, राजगोपालाचारी, और फिर जाकर सरदार।

आज सरदार या सुभाष की मूर्ति ऊँची कर देना भी गांधी/नेहरू का सन्धान है। अग्रणी में छपा वो क्रूर कार्टूनी प्रहसन आज भी जारी है।
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इस तस्वीर को छापने वाली पत्रिका थी – अग्रणी इसका सम्पादक नाथूराम गोडसे था।

इस पत्रिका में इन्वेस्टमेंट के लिए सावरकर के दिए गए हजार रुपये के प्रमाण को, गांधी मर्डर केस में, सावरकर-गोडसे के सम्बंध के सबूत के रूप में, अदालत में उल्लेख किया था।

गांधी हत्या के सोच के इस जेहनी स्मारक के छपने के 3 साल में गांधी की हत्या हो गई। अभी सत्ताधारी दल ने राहुल गांधी को रावण दिखाते हुए, घटिया मीम जारी किया। वे कभी सद्दाम हुसैन, कभी नकली गांधी कहते है।

पर उसे उतनी ही नफरत से देखते है, जितना असली गांधी को देखते थे। इतिहास से सीख लेते हुए, राहुल को अपनी सुरक्षा व्यवस्था पर गम्भीर रूप से ध्यान देने की जरूरत है।
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बहरहाल इस तरह के घटिया कार्टून पर लौटते हुए,एक बात ध्यान दिलाना चाहता हूँ।

आप देख रहे हैं कि तीरों की दिशा ऊपर है। दिखावा कुछ भी किया का रहा हो, पर इस कार्टून को बनाने वाले कार्टूनिस्ट को अंतर्मन में पता था,

की कद असल मे ऊंचा किसका है,
और कौन बौने …

–मनीष सिंह ( रीबोर्न मनीष ) से साभार

About Manoj Bhardwaj

Manoj Bhardwaj
मनोज भारद्धाज एक स्वतंत्र पत्रकार है ,जो समाचार, राजनीति, और विचार-शील लेखन के क्षेत्र में काम कर रहे है । इनका उद्देश्य समाज को जागरूक करना है और उन्हें उत्कृष्टता, सत्य, और न्याय के साथ जोड़ना है। इनकी विशेषज्ञता समाचार और राजनीति के क्षेत्र में है |

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