दोस्तों किसान आंदोलन ने एक बार फिर से रफ्तार पकड़ ली है। हरियाणा और पंजाब के किसान दिल्ली के हर बॉर्डर पर पहुंच चुके हैं,केंद्र सरकार हर हालत में किसान आंदोलन को कुचलना चाहती है और इसके लिए केंद्र सरकार ने हर बॉर्डर की पूरी तरह सील कर दिया है मतलब बड़े-बड़े बैरिकेड लगा दिए हैं रास्ते पर किले ठोक दी गई है, और तो और किसानों पर ड्रोन से आंसू गैस के गोले छोड़े गए हैं रबड़ बुलेट छोड़ी गई है कई किसान घायल हुए हैं पता चला है कि तीन किसानो की आंखें चली गई है एक किसान की मृत्यु भी हो चुकी है लेकिन गोदी मीडिया इस पर एक लाइन बोलने को तैयार नहीं है उल्टे पहले किसान आंदोलन जो कि पिछले साल हुआ था उसी की तरह इस बार भी किसानों को बदनाम करने कोई कोशिश नहीं छोड़ी जा रही,अरे भाई पिछली बार भी अपने इस तरह की बातें की थी लेकिन अंत में माननीय प्रधानमंत्री को हार मानते हुए कहना पड़ा था कि “शायद मेरी ही तपस्या में कोई कमी रह गई थी” अब बताइए दोस्तों उन दो रूपल्ली ट्रोल और गोदी मीडिया की क्या बात रह गई थी। दोस्तों यह जो किसान अपना हक मांग रहे हैं यह कोई विदेशी नहीं है यह हमारे देश के हमारे भाई हैं और अपना हक ही मांग रहे हैं इन्होंने सिर्फ एसपी के गारंटी और पिछले आंदोलन में जो वादे किए थे उनका पूरा करने की मांग रखी है और शांतिपूर्ण तरीके से यह अपनी मांग रख रहे हैं।एक भी किसान ने अभी तक सरकार पर अपनी तरफ से हमला नहीं बोला है, फिर क्यों सरकार यह दमनकारी नीति अपना रही है क्या सिद्ध करना चाहती है मोदी सरकार वैसे दोस्तों 2014 के बाद आज तक जितने भी आंदोलन हुए हैं सरकार ने अपनी दमनकारी नीतियों से उन्हें कुचलने का ही प्रयास किया है दोस्तों एसपी की मांग किसानों का हक है हम सब यह जानते हैं तो फिर किसानों को क्यों नहीं मिलता उनका हक उल्टे हम उन्हें आतंकवादी, खालिस्तान,राजनीति से प्रेरित आदि नाम देते हैं दोस्तों राजनीति से प्रेरित वाली बात पर याद आया अव्वल तो यह आंदोलन राजनीति से प्रेरित है ही नहीं क्योंकि पिछले आंदोलन से जुड़े सभी नेताओं ने इस आंदोलन से किनारा कर लिया है।
दोस्तों यदि आंदोलन राजनीति से प्रेरित है भी तो हम भूले नहीं है कि 2014 से पहले का अन्ना आंदोलन अजीत डोभाल के विवेकानंद फाउंडेशन से द्वारा प्रायोजित था और बाबा रामदेव जो की महिलाओं के कपड़े पहन कर वहां से भागे थे विशुद्ध रूप से भाजपा द्वारा प्रायोजित था और दोस्तों यदि यह आंदोलन कांग्रेस द्वारा प्रायोजित है भी तो इसमें बुरा ही क्या है विपक्ष का काम ही यही है कि वह सरकार की विफलताओं पर आवाज़ उठाएं यदि कांग्रेस यह कर भी रही है तो इसमें बुराई ही क्या है।
दोस्तों यह तो बात हुई किसान आंदोलन की वहीं पिछले दिनों आई एक और खबर ने पूरे भारत को चौंका दिया दोस्तों सुप्रीम कोर्ट ने उन इलेक्टोरल बांड को रद्द कर दिया है जो कि भारतीय जनता पार्टी सरकार अध्यादेश के जरिए लेकर आई थी electoral बांड को असंवेधानिक करार दे दिया गया है, दोस्तों सुप्रीम कोर्ट ने कहा” काले धन पर अंकुश लगाने के उद्देश्य से सूचना के अधिकार का उल्लंघन उचित नहीं है।चुनावी बांड योजना सूचना के अधिकार और अभिव्यक्ति की आजादी का उल्लंघन है राजनीतिक दलों के द्वारा फंडिंग की जानकारी उजागर न करना उद्देश्य के विपरीत है”।प्रधान न्यायाधीश डि वाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली पांच न्यायाधीशों की संवैधानिक पीठ ने पिछले साल 2 नवंबर को मामले में अपना फैसला सुरक्षित रख लिया था। मामले की सुनवाई के दौरान डी वाई चंद्रचूड ने “कहा हम सर्व सम्मत निर्णय पर पहुंचे हैं मेरे फैसले का समर्थन जस्टिस गवई जस्टिस पारदी वाला और जस्टिस मनोज मिश्रा द्वारा किया गया है इसमें दो राय है एक मेरी खुद की और दूसरी जस्टिस संजीव खन्ना की दोनों एक ही निष्कर्ष पर पहुंचते हैं हालांकि तर्को में थोड़ा अंतर है”।
अब सवाल सुप्रीम कोर्ट से इस योजना को 6 साल क्यों पलपने दिया इस दौरान भारतीय जनता पार्टी अपने खजाने को भर चुकी है, क्या इससे बीजेपी को किसी तरह का नुकसान होगा अब दोस्तों जिस तरह से सुप्रीम कोर्ट के चुनाव आयुक्त की नियुक्ति वाले फैसले को सरकार ने अध्यादेश के जरिए पलट दिया था तो क्या गारंटी है कि इस फैसले पर सरकार सुप्रीम कोर्ट के आदेश को मानेगी।
सुप्रीम कोर्ट ने यह भी आदेश दिया है कि सभी पार्टियों को आपने जितने भी लोगों से या कंपनियों से बांड दिए हैं उन्हें वह वापस कर दें,और एसबीआई को आदेश दिया है कि जिन-जिन राजनीतिक पार्टियों ने अपना यह चंदा लिया है उनकी जानकारी को सार्वजनिक किया जाए, सुप्रीम कोर्ट यहां ऐसा इसलिए कहती है कि जिन जिन लोगों ने जिन पार्टियों को चंदा दिया है उन पार्टियों को पता होता है कि इस चंदे के बारेमें,और जब वह पार्टी सत्ता में आ जाती है तो इस चंदे का फायदा संबंधित कंपनी उठाती है साथ ही सरकारी एजेंसी जैसे इनकम टैक्स डिपार्टमेंट आदि उसे कंपनी को किसी तरह की परेशानी नहीं होने देती। सुप्रीम कोर्ट ने यह भी कहाकी यह बांड साफ तौर और सुचना के अधिकार और आर्टिकल 19(1)(a)का उल्लंघन है।2019 मे राहुल गांधी ने एक बयान दिया था कि नए भारत में रिश्वत और अवैध कमिशन को इलेक्टरल बांड कहा जाता है दोस्तों इस मुद्दे को राहुल एक लंबे अरसे से उठा रहे हैं।दोस्तों जब यह योजना तत्कालीन वित्त मंत्री अरुण जेटली लेकर आए थे तो उसे वक्त रिजर्व बैंक और चुनाव आयोग ने भी इस योजना का विरोध पुरजोर शब्दों में किया था। दोस्तों आरबीआई ने यह कहा था कि यदि कोई व्यक्ति कंपनी किसी राजनीतिक पार्टी को चंदा देना चाहती है तो इसके लिए वह चेक, ड्राफ्ट या अन्य डिजिटल माध्यम से भी चंदा दे सकती है इसके लिए इस बिल की आवश्यकता नहीं है साथ ही आरबीआई ने यह भी कहा था कि इससे स्थानीय स्थापित अंतरराष्ट्रीय व्यवस्था बिगड़ जाएगी चुनाव आयोग ने भी एक पत्र लिखकर विरोध किया था पत्र आपकी स्क्रीन पर उपलब्ध है।
दोस्तों इस योजना के सबसे ज्यादा फायदा बीजेपी को हुआ है दोस्तों 2018 से लेकर आज तक जितना भी इलेक्टरल बांड के द्वारा चंदा आया है उसमें से 90% भाजपा की जेब में गया है 2018 में भाजपा की जेब में 2010 करोड रुपए गया, 2019 में 1450,करोड़ 2020 में 2555,करोड़ 2021 में 22.38 करोड़, 2022 में 1033 करोड़ और 2023 में 1294 करोड़ रूपया भाजपा की जेब में गया है।मतलब गुप्त चुनावी चंदा का 90% भाजपा की जेब में गया है।
चौंकाने वाली बात है दोस्तों की जब यह फैसला आया था सुप्रीम कोर्ट का उसके दूसरे ही दिन आयकर विभाग ने कांग्रेस के सभी खाते फ्रीज कर दिए यह तब हुआ जब चुनाव के ऐलान के दो या तीन हफ्ते रह गए हैं यह खाते फ्रीज करने की वजह बताई गई है कि अपने इनकम टैक्स रिटर्न में भरने में कांग्रेस ने 40 दिन की देरी कर दी और हास्यास्पद बात यह है दोस्तों की यह मामला 2018 का है साथ में यह भी कहा गया है कि यदि कांग्रेस 210 करोड रुपए देती है तभी इन खातों को खोला जाएगा। दोस्तों जब सरकार इस तरह की कदम उठाती है तो सीधे चुनाव रद्द कर देना चाहिए दोस्तों मार्च 2023 के आंकड़ों के अनुसार कांग्रेस के बैंक खातों में 162 करोड रुपए है और भाजपा के बैंक खातों में ₹5425 करोड रुपए हैं, फर्क साफ है।