Wednesday , 19 March 2025

राम मंदिर परआदरणीय शंकराचार्यों का दृष्टिकोण: सही या गलत

         नमस्कार दोस्तों एक बहुत ही विवादस्पद विषय पर आज बातचीत करने जा रहे हैं। दोस्तों हम राम मंदिर के उद्घाटन जो की 22 जनवरी को  होने वाला है बस कुछ ही दिन बाकी है अब क्योंकि भगवान राम हमारे आराध्य देव हैं और पूरे भारत के आराध्य देव है पूरे देश के आराध्य देव है तो जो बात आज मैं कहने जा रहा हूं समझ में नहीं आ रहा है कि राम के पक्ष में है या विरोध में क्योंकि राम मंदिर बने यह मैं ही नहीं पूरा हिंदुस्तान चाहता है पूरा भारत यही चाहता है कि राम मंदिर बने लेकिन राम मंदिर के उद्घाटन में हमारे धर्माचार्यो का हमारे शंकराचार्यो का विरोध इसे स्वत ही कटघरे में खड़ा कर देता है दोस्तों सूत्रों की माने तो राम मंदिर का निर्माण अभी 40% ही पूरा हो पाया है हम 40% निर्माण में तो हमारा गृह प्रवेश भी नहीं करते तो यह तो राम मंदिर का उद्घाटन है बात समझ में नहीं आती दोस्तों।

                हमारे बहुत से ग्रंथ हैं जिनमें प्राण प्रतिष्ठा के बारे में बहुत ही विस्तार से बताया गया है संपूर्ण मंदिर को ही देवता का रूप बताया गया है अग्नि पुराण के 61वें अध्याय में कहा गया है

     “प्रसादो वासुदेवयस्य मूर्ति रूपों निर्वाथमें,”

 यानी मंदिर स्वयं देवता की प्रतिमा होती है।

     विश्वामित्र संहिता के अनुसार,

“ प्रसादम देव देवस्य प्रोचयतें सात्यकी तनु”

 यानी मंदिर भी देव प्रतिमा के समान ही होता है।

 दूसरी बात जब मंदिर में देवता की प्राण प्रतिष्ठा होती है तो मंदिर के कई भागो की प्रतिष्ठा होती है मतलब द्वार प्रतिष्ठा शिखर में कलश की प्रतिष्ठा और ध्वज की प्रतिष्ठा होती है इसके बिना प्रक्रिया पूरी नहीं होती मतलब जैसे देवता की अधूरी मूर्ति की प्रतिष्ठा नहीं हो सकती ठीक वैसे ही मंदिर अधूरा हो तो प्रतिष्ठा नहीं हो सकती।

        नारद संहिता में विश्वामित्र संहिता में आग्नेय महापुराण में विष्णु संहिता में अनेक ग्रंथो में मंदिर के अलग-अलग हिस्सों का भगवान की प्रतिमा की तरह ही वर्णन किया गया है।

प्रतिष्ठा मयुख नामक ग्रंथ के अनुसार मंदिर के पाद शीला यानी देवता के चरण,गर्भ ग्रह देवता का उदर यानि पेट,मंदिर के खंभे देवता की भुजाएं,ज्योति जैसे देवता के नेत्र, इंटे जैसे अस्थियां खिड़कियां जैसे कान और कलश को देवता का मस्तक, शिखर देवता की नेत्र,और ध्वज को देवता के केश के समान माना गया है।

 इस प्रकार अधूरा मंदिर देवता की अधूरी मूर्ति के समान ही माना जाएगा ऐसे भवन में देवता की स्थापना रूप से अशास्त्रीय होगी यानी शास्त्र के विरुद्ध।

           विष्णु धर्मोत्तर पुराण कहता है।

 ततो धर्मस्य विन्यास: कर्तव्य पृथ्वीपते।

 असुरा वास मिच्छन्ते, ध्वज हीने सुरालये।।

              यानी मंदिर में ध्वज को कलश के ऊपर स्थापित होना ही चाहिए क्योंकि ध्वज विहीन मंदिर में राक्षसों का निवास होता है।

              अब बात करते हैं मुहूर्त की दोस्तों चारों शंकराचार्य मंदिर के उद्घाटन में नहीं जा रहे हैं आखिर क्या वजह है कि शंकराचार्य वहां नहीं जा रहे हैं यद्यपि गोदी मीडिया और दो रूपल्ली ट्रोल ने तो शंकराचार्य को ही धर्म विरोधी ठहरा दिया है ये देखिये दोस्तों शंकराचार्य सनातन धर्म में ईश्वर के बाद सर्वोच्च स्थान रखते हैं ऐसे में शंकराचार्य के लिए अनर्गल बोलकर यह लोग अपने आप को हिंदू कहते हैं शर्म आती है इन लोगो पर दरअसल शंकराचार्य के अनुसार मोदी सरकार अपने चुनावी मंसूओं को पूरा करने के लिए यह प्राण प्रतिष्ठा करवा रही है शास्त्रों के अनुसार पोष मास में कोई भी मांगलिक कार्य व देव प्रतिष्ठा वर्जित है।

                वशिष्ठ संहिता में बताया गया है कि यद्यपि पौष मास में उत्तरायण हो जाता है लेकिन फिर भी इस मास में होने वाली प्रतिष्ठा संपूर्ण दुख और संताप को देने वाली होती है चातुर्मास यानी आषाढ़ श्रावण भाद्रपद और आश्विन मास में होने वाले प्राण प्रतिष्ठा पत्नी एवं पुत्र विनाशक होती है और कार्तिक मास में की गई प्रतिष्ठा कर्ता को मृत्यु देता है।

               मुहूर्त चिंतामणि में कहा गया है कि सूर्य के उत्तरायण रहते माघ फाल्गुन वैशाख ज्येष्ठ मास में  देवता की प्रतिष्ठा की जानी सर्वश्रेष्ठ होती है । बस चारों शंकराचार्य इसी बात की मुख़ाल्फ़त कर रहे हैं इसी बात का विरोध कर रहे हैं लेकिन क्या कहा जाए मोदी जी इन सभी ग्रंथो की अपेक्षा करते हुए प्राण प्रतिष्ठा करने पर उतारू है अब क्योंकि मात्र चार माह बचे हैं लोकसभा चुनाव में तो इस  प्राण प्रतिष्ठा से राम मंदिर के माहौल से चुनावी लाभ लेना जो आवश्यक है।और इसीलिए  यह उद्घाटन किया जा रहा है।

About Manoj Bhardwaj

Manoj Bhardwaj
मनोज भारद्धाज एक स्वतंत्र पत्रकार है ,जो समाचार, राजनीति, और विचार-शील लेखन के क्षेत्र में काम कर रहे है । इनका उद्देश्य समाज को जागरूक करना है और उन्हें उत्कृष्टता, सत्य, और न्याय के साथ जोड़ना है। इनकी विशेषज्ञता समाचार और राजनीति के क्षेत्र में है |

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